पिता की आस

हां में सही कह रहा हूं प्रकृति में आए परिवर्तनो ने समस्त मानव 

जीवन के रिश्तों से हम कि भावनाएं धीरे धीरे लुप्त होती जा रही हैं बैटा मेरा अब जवान हो गया है और उसकी शादी भी वक्त ने कितना कुछ बदल दिया जो बैटा मेरे पास सोने के लिए रोता था
आज वह मेरे जल्दी सो जाने पर खुश होता है हां सच हैं जब कोई मेहमान घर पर आते थे और जाते वक्त बच्चों के हाथ में कुछ रुपए दे जाते थे बेटा दौड़ कर मेरे पास आता था और वह रुपये मेरी जेब में रख देता था जब उसे याद आती गोली बिस्कुट मंगवाता था किंतु पैसा कभी ना मांगता । एक दौर के बाद सब कुछ बदल गया था मैंने अपना सब कुछ अपने बेटे को दे दिया था जब जब जरूरत लगती पैसा मांग लेता था और बेटा खुशी खुशी से दे देता था लेकिन कुछ दिनों बाद यह सब उल्टा होने लगा, अब कुछ पैसे भी नही मिलते जेब खर्चे के, मुंह तरफ देखता हूं अपने बेट के , बच्चा अब बड़ा और समझदार हो गया सारी कमाई बहू को देता है मुझे कभी-कभी लगता है मैंने इसे अच्छे संस्कार दिए थे कमी कहां रह गई कौन से गुण में उसे दे नहीं पाया विचार करता हूं अब मेरी उम्र भी बच्चा होने चली है हाथ पैर इतने काम नहीं करते रगों में अब उबाल नहीं आताअसहज महसूस करता हूं अपना वक्त गुजारता रहता हूं बस बच्चे को देखकर मन में शांति मिलती है उसकी मां भी मुझे छोड़ कर चली गई मेरा अकेलापन मेरी सुनी जिंदगी मैं तनाव उत्पन्न करता है भाव से भावनाओं में बह जाता हूं बच्चियां थी जो सब अपने ससुराल चली गई तीज त्योहार पर ही उनका आना होता है जितना ख्याल उसकी मां रखा करती थी मेरा उतना बहू कहां रख पाएगी उसे अपने बच्चे और घर के कामकाज में ही पूरा दिन गुजर जाता है कभी तो तू बात कर लेती है दादा जी चाय पिएंगे क्या दादाजी नाश्ता करेंगे क्या मैं क्या शब्द को नहीं सुनना चाहता इससे हम की भावनाएं विलुप्त होती जान पड़ती है रोज इस तरह के अनेक सवाल करती हैं किंतु मैं कुछ नहीं बोलता मुझे पता है मेरा इनके सिवा और है कौन लेकिन स्नेह इनका धीरे धीरे कम होता जा रहा हैं और मेरा तनाव धीरे धीरे बढ़ता जा रहा है ऐसी स्थिति आ गई है कि मैं करूं भी तो क्या करूं, समय मेरा ना रहा और अब तो हाथ पैर ने भी काम करना बंद कर दिया है बेटा काम करके घर लौटता है थक जाता है दिन भर की थकान उसे मेरे पास नहीं आने देती है बस खाना खाता हूं उसके साथ ज्यादा बातचीत नहीं होती है पहले हंसी मजाक भी किया करता था उसके पास वक्त नहीं या उसका मेरे से मजाक करना पसंद नहीं। अब तो बहू नरम गरम होने लगी हैं मैं कुछ नहीं बोलता अपने मन में हल्की सी मुस्कान लिए उस बात को टाल देते सोचता हूं अभी नादान है और नादानी में ऐसी गलतियां अक्सर होती लेकिन कुछ समय बाद यह मामला और बिगड़ जाता है और लड़के तक बात जाती है लेकिन लड़का कुछ नहीं बोलता
लड़का कितना मतलबी हैं जिस पिता ने उसे आज इस लायक बनाया उनका कोई ध्यान ही नही रखा जा रहा
क्या अजीब गनीमत हैं उम्र के पड़ाव की ओर कंप कपाते शरीर उन हाथों की उंगलियों की जो बच्चों का हाथ थामने को कहती हैं उसके सहारे चलने को आतुर हैं किंतु आधुनिकता के दौर में सब कुछ समय के विपरित होता चला जा रहा हैं एक तरफ पत्नी के खो जाने का गम और दूसरी तरफ मेरा अकेलापन बच्चे सुनते नही हमे समझते नहीं में बेटे की आलोचना नही कर रहा हूं क्योंकि जो किया है मैने ही किया हैं छोटे से लेकर आज तक उसकी हर बात का जवाब में देता था उसकी नटखट बातों से मेरा मन भर जाता था
हर बार एक ही सवाल करता था ये कोवा क्यों बैठा हैं कोई मेहमान आने वाले हैं क्या ?
में कहता हां मेहमान आने वाले हैं
जब जब कोवा देखता बस यही सवाल हर बार करता उसके मासूम चेहरे को देख मुस्कुराता और उसका जवाब हां मैं देता ।
क्योंकि मुझे पता था वह अभी बच्चा हैं इसकी मानसिक उपच में एक जिज्ञासा हैं ।
लेकिन अब सब कुछ बदल गया है तौर तरीके और जीवन शैली के मूल भाव।
बस जी रहा हूं
जी रहा हूं........
हां जी रहा हूं


कवि
संतोष तात्या
 

3 टिप्‍पणियां:

I am a poet and blogger, read our blog and write feedback so that I can give you better content.