पहले क्या भूखमरी या फिर कोरोना वायरस
जी नहीं पहले भूखमरी इसके बाद कोरोंना वायरस क्यों कि कोरोना वायरस तो अभी आया हैं उसके पहले भी भूखमरी देश में व्याप्त रही हैं। आगे रहेंगी या नहीं इसकी कोई खास गारंटी नहीं है लेकिन फिर भी यहां हम सबके लिए एक बहुत ही भयानक बात साबित हो रही है तमाम भौतिक संसाधनों के बावजूद भी हम देश व्यापी समस्या से उभर नहीं पाए सरकार पहले भी थी सरकार आज भी है लेकिन हम इस समस्या से उभरे नहीं हैं
यह सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन सरकार सहयोग करे तो सरकार कितने फूट-पाथ पर दिन गुजर रहे लोगो की समीक्षा कब की कब उन्होंने सरकार को होने का अहसास दिलाया है भुखमरी के कारण भोपाल शहर के रोशनपुरा चौराह,बोर्ड ऑफ़िस चौराह तथा ट्रैफिक चौराहों पर देश के ऐसे कई बड़े - बड़े शहरों के चौराहों पर बच्चे पर अपने पैठ पालने के लिए दर बदर कुछ पेपर की गड्डी लेकर घूमते रहते हैं दिन भर ट्रैफिक के बीच अपनी जिंदगी को हमेशा मोटर वाहनों के बीच पालते है क्या ये देश का भविष्य नहीं ?
भुखमरी देश के बड़े - बड़े शहरों की यही सच्ची कहानी हैं यह भूख 1943 में भी बरकरार थी और आज 2020 में भी बर करार है
देश ने सभी मायनों में हर क्षेत्र में यह तक की हम अन्तरिक्ष में भी अपना झंडा लहरा चुके है लेकिन हम भुखमरी नहीं मिटा सके। ओर न ही ये सरकारेे
कोराना इन दिनों खबरों की फेहरिस्त में सबसे ऊपर है होना भी चाहिए, चीन से शुरू होकर यह दुनिया भर में पैर पसार चुका है ऐसे में खबर को सबसे ऊपर होना भी चाहिए पर, कोरोना वायरस के फैलाव की खबर इतनी अधिक फैल चुकी है कि हमने उन खबरों को तवज्जो देना ही बंद कर दिया, जो वाकई शर्मनाक ही हैं समाज के लिए भी और सरकार के लिए भी और शायद इस बदनामी से बचने के लिए ही राज्य सरकारें अमूमन ऐसी खबरों को झूठी खबर बताकर पल्ला झाड़ लेती है।
कोराना के विस्तार के समय में जब प्रशासन से लेकर लोकमानस की चिंता में सार्वजनिक स्वास्थ्य ही प्रमुखता में है, जब केंद्र और राज्य सरकारें भी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए कमर कस चुकी हैं। हैंड सेनेटाइजर से लेकर मास्क और फोन के कॉलर ट्यून तक बदले जा रहे हैं ताकि जागरूकता फैले, लोग बचें और बचाएं।
खबरिया चैनलों में भी लगातार इस पर बहसें और चर्चाएं चल रही हैं, धर्मगुरु अलग मंत्र दे रहे, कुछ लोग क़िस्म-क़िस्म के हवन और गोमूत्र पार्टियों का आयोजन कर रहे हैं. ऐसे में, भूख से हो रही मौत की खबर न तो बिकने लायक है न दिखने लायक। भुखमरी की मौत रोमांच पैदा नहीं कर रही.
अब जब सरकारें देश की जनता के स्वास्थ्य और किसी बीमारी को लेकर इतनी जागरूक हो रही है तो ऐसे में सरकार का ध्यान भुखमरी जैसी समस्या की ओर भी आए इसलिए इस पर भी लिखना में ज़रूरी समझा चाहे कि आदमी जिंदा रहेगा तभी तो किसी वायरस से बचेगा!
यह घटना 2016 से लेकर अब तक झारखंड में 23 लोग भूख के कारण मरे हैं।
अब एक नजर भुखल घासी की मौत पर। यह जानकारी 7 मार्च, 2020 को रांची से प्रकाशित अखबारों में सामने आयी कि भूखल घासी की मौत भूख से हो गई। खबर के मुताबिक भूखल घासी के घर में चार दिनों से चूल्हा नहीं जला था।
मृतक भुखल घासी व परिवार
खबर सामने आते ही सरकारी तंत्र लीपापोती में जुट गया। झारखंड सरकार के खाद्य आपूर्ति एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव, निदेशक, उपायुक्त, जिला आपूर्ति पदाधिकारी समेत कई अधिकारी कसमार प्रखंड मुख्यालय से मात्र पंद्रह किमी दूर करमा शंकरडीह पहुंचे, घटना की जानकारी ली और थोक भाव में संवेदना भी व्यक्त की। इतना ही नहीं, सरकारी तंत्र ने अपना कसूर स्वीकारने के बजाय स्थानीय प्रखंड विकास पदाधिकारी, विपणन अधिकारी व सिंहपुर पंचायत के मुखिया को डांट-फटकार भी लगाई।
फिर इसके बाद वही हुआ जो आमतौर पर होता है कि पीड़ित परिवार पर सरकारी कृपा जमकर बरसायी जाती है।
मृतक भूखल घासी के परिजनों के उपर भी सरकारी कृपा जमकर बरसी। पीड़ित परिवार को कई सुविधाएं एक साथ ऑन द स्पॉट मुहैया कराई गईं। मसलन, मृतक की पत्नी रेखा देवी के नाम पर तुरंत राशन कार्ड बनवाकर दिया गया। साथ ही तुरंत उसके नाम पर विधवा पेंशन की भी स्वीकृति हो गयी। आंबेडकर आवास की भी स्वीकृति हो गयी। इसके अलावा मृतक की पत्नी रेखा देवी के नाम पर पारिवारिक योजना का लाभ स्वीकृत कर 10 हजार रुपए का तुरंत भुगतान कर दिया गया। सचिव द्वारा बाकी 20 हजार रुपए खाता खुलवाकर जल्द से जल्द ट्रांसफर करने का निर्देश दिया गया।
सरकारी संवेदनशीलता कहिए या फिर सरकारी कृपा तब नहीं बरसी थी जब भूखल घासी जिंदा थे। करीब एक साल पहले से भूखल घासी का स्वास्थ्य खराब था। वह कमाने लायक नहीं था। ऐसी स्थिति में उसे और उसके परिवार वालों को खाने के लाले रहे। तब किसी ने भी उसकी सुध नहीं ली। सरकारी दस्तावेजों में भूखल घासी के पास नरेगा रोजगार कार्ड भी था, जिसकी संख्या – JH-20-007-013-003/211 है। कार्ड पर उल्लेखित विवरण के मुताबिक उसे फरवरी 2010 के बाद से कार्य उपलब्ध नहीं कराया गया है। दूसरी तरफ उसका नाम बीपीएल पुस्तिका की सूची संख्या 7449 में दर्ज होने के बावजूद उसका सरकारी राशन कार्ड नहीं बना था। कारण यह है कि पूरा प्रखंड दलालों के कब्जे में है। वे ही तय करते हैं कि किसे सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए और किसे नहीं।
क्या ये सारी सुविधाएं भुखल को पहले मिल जाती तो शायद उसकी जिदंगी बच जाती ओर उसके परिवार को सुना छोड़ कर नहीं जाना पड़ता ।
यही भुखमरी का मुख्य व मूल कारण है जिसे समस्त राज्यो की सरकारेे ध्यान नहीं देती है बस आंकड़ों में ही तल्लीन रहती है
यही काफी नहीं है कि अब कोरोना वायरस ने लोगो की जान ले ली है इसने बहुत से गरीब मजदूरों को बेबस कर दिया है लोग कोरोना वायरस से ज्यादा बीमार भूख से मर गए है
राम जी महतो दिल्ली से बिहार के बैगुसराय अपने गांव पैदल ही चल दिए लेकिन पता नहीं कितने दिन से भूखे थे अपने घर पहूचने से पहले ही उन्होंने बनारस में दम तोड़ा
दिया देखिए इस तस्वीर को।
मृतक रामजी महतो
दूसरी नजर उनके पैठ को देखे यह पता नहीं चल पा रहा कितने दिन से भूखे होंगे ।
तकरीबन सभी मजदूरों के पास खाने और रहने कि उचित व्यवस्था नहीं है और सभी मकान मालिक ने किरायदार को कमरा खाली करने कह दिया है तथा फैक्ट्रियों के कर्मचारियों को फैक्ट्रियों के मालिकों ने निकाल दिया जिससे भुखमरी का शिकार हो गए है दिल्ली की सड़कों पर लाखों की संख्या में मजदूर अपने घर की ओर पलायन कर रहे है अब अपने गांव पैदल जाने को तैयार हो गए है अब इसे में कहा उनकी रोटी ओर कहा उनका खाना पीना लोग चल चल कर भी मर गए है
इस तरह कुछ रिपोर्ट इस प्रकार हैं
भुखमरी की स्थिति में कोई सुधार नहीं, भारत 102 स्थान पर; पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका से भी पीछे -
https://f87kg.app.goo.gl/mUgQjLkgqeEnSbNh7संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में सबसे अधिक 19.4 करोड़ लोग भारत में भुखमरी के शिकार हैं. यह संख्या चीन से अधिक है.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन (AFO) ने अपनी रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फूड इनसिक्योरिटी इन द वर्ल्ड 2015’ में यह बात कही है. इसके अनुसार दुनियाभर में यह संख्या 2014-15 में घटकर 79.5 करोड़ रह गई, जो कि 1990-92 में एक अरब थी.
हालांकि भारत में भी 1990 तथा 2015 के दौरान भूखे रहने वाले लोगों की संख्या में गिरावट आई. 1990-92 में भारत में यह संख्या 21.01 करोड़ थी, जो 2014-15 में घटकर 19.46 करोड़ रह गई.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत ने अपनी जनसंख्या में भोजन से वंचित रहने वाले लोगों की संख्या घटाने में अहम प्रयास किए हैं, लेकिन एफएओ के अनुसार अब भी वहां 19.4 करोड़ लोग भूखे सोते हैं. भारत के अनेक सामाजिक कार्य्रकम भूख व गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहेंगे, ऐसी उम्मीद है.’
हालांकि, इस अवधि में चीन में भूखे सोने वाले लोगों की तादाद में अपेक्षाकृत तेजी से गिरावट आई. चीन में यह संख्या 1990-92 में 28.9 करोड़ थी, जो 2014-15 में घटकर 13.38 करोड़ रह गई.
रिपोर्ट के अनुसार, AFO की निगरानी दायरे में आने वाले 129 देशों में से 72 देशों ने गरीबी उन्मूलन के बारे में सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को हासिल कर लिया है।
UN रिपोर्ट - https://aajtak.intoday.in/story/194-million-people-starved-for-food-in-india-in-2014-2015-1-814656.html
कोविड-19 की महामारी के बीच UN की चेतावनी, 'जल्द ही दुनियाभर में दोगुनी हो सकती है भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या'
विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डेविड बीस्ले ने कहा, ''अभी अकाल नहीं पड़ा है लेकिन मैं आपको आगाह करना चाहूंगा कि अब अगर हमने तैयारी नहीं की और कदम नहीं उठाए तो आगामी कुछ ही महीनों में हमें इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है.
दुनिया में इस समय 13 करोड़ 50 लाख लोग भुखमरी या उससे भी बुरी स्थिति का सामना कर रहे हैं
संयुक्त राष्ट्र: Coronavirus Pandemic: संयुक्त राष्ट्र (UN) के निकाय विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme) ने आगाह किया है कि दुनिया ''भुखमरी की महामारी'' के कगार पर खड़ी है और अगर वक्त रहते जरूरी कदम नहीं उठाए गए कुछ ही महीने में भुखमरी (Hunger) के शिकार लोगों की संख्या में भारी इजाफा हो सकता है. गौरतलब है कि दुनियाभर में 25,65,290 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं, जिनमें से पौने दो लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डेविड बीस्ले ने मंगलवार को ''अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा अनुरक्षण: संघर्ष से उत्पन्न भूख से प्रभावित आम नागरिकों की सुरक्षा'' विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सत्र के दौरान कहा, ''एक ओर हम कोविड-19 (Covid-19) महामारी से लड़ रहे हैं वहीं, दूसरी ओर भुखमरी की महामारी के मुहाने पर भी आ पहुंचे हैं.''
उन्होंने कहा, ''अभी अकाल नहीं पड़ा है लेकिन मैं आपको आगाह करना चाहूंगा कि अब अगर हमने तैयारी नहीं की और कदम नहीं उठाए तो आगामी कुछ ही महीनों में हमें इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है. इससे निपटने के लिये हमें फंड की कमी और कारोबारी बाधाओं को दूर करने समेत कई कदम उठाने होंगे.'' बीस्ले ने कहा कि कोविड-19 के चलते दुनिया वैश्विक स्वास्थ्य महामारी ही नहीं बल्कि वैश्विक मानवीय सकंट का भी सामना कर रही है. उन्होंने कहा कि संघर्षरत देशों में रहने वाले लाखों नागरिक, जिनमें कई महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, भुखमरी के कगार पर हैं.
बीस्ले ने कहा कि पूरी दुनिया में हर रात 82 करोड़ 10 लाख लोग भूखे पेट सोते हैं. इसके अलावा 13 करोड़ 50 लाख लोग भुखमरी या उससे भी बुरी स्थिति का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ''विश्व कार्यक्रम के विश्लेषण में पता चला है कि 2020 के अंत तक 13 करोड़ और लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच सकते हैं. इस तरह भुखमरी का सामना कर लोगों की कुल संख्या बढ़कर 26 करोड़ 50 लाख तक पहुंच सकती है.''
कोविड-19 की महामारी के बीच UN की चेतावनी, 'जल्द ही दुनियाभर में दोगुनी हो सकती है भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या' - NDTV https://khabar.ndtv.com/news/world/global-hunger-could-double-due-to-coronavirus-pandemic-un-2216318
इन तमाम मामलों तथा घटनाओं को। देख कर हमे कोरोना वायरस से नहीं बल्कि भूखमरी से मर रहे लोगो की जान बचाना होगी क्यों कि आने वाले समय में हमे बहुत ही विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा । एक तरफ जीडीपी की गिरावट और एक तरफ भावी हुआ पीढ़ी का नोकरी से निकाल देना एक तरफ का भूकमारी को बढ़ावा देने से कम नहीं हैं
वास्तव में यह चिंतन तथा जरूरत लोगो को मदद करने का अवसर हैं ।
ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगो को भूख की इस महामारी से बचाया जा सकेगा ।
सभी राज्यों की सरकार अपने अपने स्तर पर सुविधाएं मुहैया करा रही लेकिन वह अंतिम आदमी तक पहुंचाने में असफल हुई है इसके साथ ही बहुत सारे सामाजिक कार्यकर्ता तथा अन्य सामाजिक एनजीओस जो भूख को मिटाने में अपनी महती भूमिका निभा रहे।
मैं भी एक ऐसे NGO से जुड़ा हूं जिसका नाम जीवन सार्थक है वह अब तक 50000 हजार लोगों को भोपाल शहर के जरुरत मंद लोगो को खाना खिलाने में अपना योगदान दे रहा हैं साथ ही साथ जरूरतमंद को ब्लड डोनेट करने का काम भी बखूबी कर रहा है हमारी पूरी टीम को बधाई तथा शुभकामनाएं नए आयाम को गढ़ने के लिए ।
इसके साथ एनएसएस के माध्यम से हम लोगो को अंधविश्वासों व अफ़वाए से बचाने का तथा जागरूक करने का काम भी कर रहे है
ताकि लोगो का मनोबल बड़े व उन्हें आत्मबल मिल सके।
इन तमाम मुद्दों को ध्यान में रखते हुवे हम भूखमरी और कोरोना वायरस के प्रकोप से घिर चुके हैं लॉकडॉउन का यह तीसरा चरण आ पड़ा है
और भूखमरी अभी खत्म नहीं हुई बल्कि बढ़ती जा रही है साथ ही दूसरे अन्य राज्यों में फंसे मजदूर एवम् छात्र यह अपने घर लौटना अभी बाकी है
तो हमारे सामने वही सवाल आ गया है.....
जी हां पहले क्या भुखमरी या फिर कोरोना वायरस.....?
ओर इसे हमे मिटाना है ।
संतोष तात्या
- Tatya 'Luciferin'
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