निबंध

                            निबंध
विषय:-
"कोविड-19 महामारी उपरांत सामाजिक-आर्थिक उत्थान में विज्ञान एवम् प्रोद्यौगिकी की भूमिका"
1.) प्रस्तावना:- विश्वव्यापी महामारी कोविड -19 के उपरांत सामाजिक आर्थिक उत्थान में निश्चित ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने अपनी अहम भूमिका निभाई हैं जिसमें विज्ञान ने कोविड-19 के ज्ञान को क्रम बद्घ कर उससे निपटने के उपाय डूंड रहा है तथा एक ओर सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिए प्रोद्यौगिकी अपना काम सूचना संचार के माध्यम से कर रही है यदि सूचना संचार का माध्यम न होता तो हम इसके शिकार बहुत जल्द हो जाते। ओर यह वायरस आज ना जाने कितने लोगो को प्रभावित करता अनगिनत जाने जाती सरकार द्वारा जो मदद हमें मील रही है उदाहरण के लिए :-केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों के द्वारा उठाए गए कोरोना राहत राशि पैकेज,किसान, मजदूर के खातों में पैसे पहुंचना कोविड-19 के उपरांत सामाजिक - आर्थिक उत्थान में विज्ञान एवम् प्रोद्यौगिकी की वजह से संभव हो पाया है

कोरोना वायरस क्या है ? :-
कोरोना वायरस का संबंध वायरस के ऐसे परिवार से है जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है। इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है। इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान में शुरू हुआ था। डब्लूएचओ के मुताबिक बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ इसके लक्षण हैं। अब तक इस वायरस को फैलने से रोकने वाला कोई टीका नहीं बना है।
इसके संक्रमण के फलस्वरूप बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरती जा रही है। यह वायरस दिसंबर में सबसे पहले चीन में पकड़ में आया था। जो आज पूरे विश्व मैं एक महामारी का रूप में फैल गया है

कोविड़-19 के उपरांत सामाजिक - सामाजिक उत्थान में विज्ञान एवम् प्रोद्यौगिकी की भूमिका:-
भौतिक आधुनिक उपकरण संप्रेषण संचार का माध्यम बने हुए हैं जो समाज के सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिए उत्तरदायित्व होते हैं आज हम देख रहे हैं किस तरह चीन में कोरोना वायरस का प्रकोप फैला और सूचना संचार के माध्यम से इसने एक विश्वव्यापी रूप ले लिया। ऐसा माना जाता है कि यदि हमें पूर्वाभास या संदेह रहता है किसी भी बीमारी या किसी प्रकोप का तो हम उसकी पूर्व योजना तथा तैयारी की जा सकती है तमाम प्रकार के पहलुओं से हमें सामाजिक आर्थिक सुधार विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से ही हुआ है सबसे बड़े विज्ञान व संचार हैं संचार के बिना हम अधूरे हैं कोरोना के कारण आज देश की अर्थवयवस्था चरमरा गई जिससे देश में आर्थिक मंदी छाया गई है समूचे देश को बहुत ही कठिनायों से गुजरना पड़ रहा है हमे विज्ञान ने सही राह दिखाई है आज तमाम प्रकार के कारोबार हम हजारों लाखों मील दूर तक के कार्य घर बैठे बैठे कर कर रहे है कोरोना की ट्रेनिंग हो या सरकार के आदेश हम तक सीधे सीधे पहुंच रहे हैं जो हमारी आर्थिक मदद करने में मजबूती प्रदान कर रहे है
उदाहरण :- भारत सरकार द्वारा तमाम प्रकार की आर्थिक राशि हो या फिर कोरोना राहत पैकेज की मदद, राज्य के द्वारा कोरोना राहत राशि तथा अन्य योजनाओं का लाभ सीधे सीधे उनके खाते में लाखो करोड़ो रुपए का एक क्लिक कर सभी के खातों में पहुंचना तथा उनको मोबाइल संदेश के माध्यम से सूचित करना यह सब एक प्रकार का विज्ञान ओर प्रोद्यौगिकी ही कमाल है।
सामाजिक आर्थिक उत्थान में :- सामाजिक का शाब्दिक अर्थ सजीव से यह शब्द समाज+ईक प्रत्यय से बना है चाहे वो मानव जनसंख्या हों अथवा पशु।
कार्ल मार्क्स के अनुसार:-"यूथचारी जीव" (झुण्ड में रहने वाला) काल से हैं
कोरोना वायरस (कॉविड -19) के समय समाज को सामाजिक - आर्थिक लाभ प्रदान करने के लिए
नीतियों को संदर्भित कर उसे समाज को सरकार की ओर से आय और धन की समुचित मदद की का सके। तथा जिनका उद्देश्य जनहित के कार्यों से हो जैसे :-गरीब किसान मजदूर के खाते में सीधे-सीधे पैसे डालना जिससे उनकी सामाजिक तथा आर्थिक समस्या का समाधान हो सके यह सब संभव विज्ञान और प्रौद्योगिकी के कारण ही हो पाया है हम देख रहे हैं एक क्लिक पर लाखों करोड़ों खाताधारकों को निर्धारित की गई राशि उनके बैंक अकाउंट में पहुंच जाती है एक क्लिक करने के पहले इनकी संख्या लाखों-करोड़ों में रहती है लेकिन बाद में यह खाताधारकों के अनुसार विभाजित हो जाती है तथा इसके साथ ही उन्हें उनके आधार कार्ड से लिंक मोबाइल नंबर पर संदेश के माध्यम से उन्हें सूचित भी किया जाता है जिससे वह अपनी राशि का उपयोग कर सकें।
अन्य उदाहरण
1. शिक्षा आजकल सभी स्कूल ,कॉलेज, यूनिवर्सिटी बंद है लेकिन ऑनलाइन के माध्यम से उनकी पढ़ाई जारी है
2.देश के बड़े - बड़े शैक्षणिक संस्थान आईआईटी दिल्ली, आईआईटी बांबे,एम्स, व‌र्ल्ड यूनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन और चेन्नई की एक्सटाइल मिल्स के माध्यम से हम कोरोना किट, पीपीई किट का डिजाइन विज्ञान के आधुनिक भौतिक संसाधनों से ही कर रहे है

उपसंहार
आजकल विज्ञान एवम् प्रोद्यौगिकी ने हमे जिज्ञासु प्रवृत्ति का बना दिया है जो भी मन करता है हम इंटरनेट के माध्यम से उसे खोज कर उसके उपाय में लग जाते है ठीक ऐसा ही हम सबने कोरोना वायरस की खबर जब चीन के वुहान तथा चीन के साथ साथ पूरे विश्व में फैली थी उस समय से लेकर आज तक हमें आईटी (सूचना प्रौद्योगिकी)के माध्यम से ही सूचना लगातार मिलती रही है
तथा विज्ञान से उसके उपचार एवम् सेनेटाइजर,मास्क तथा किट की जानकारी भी इन्ही के माध्यम से मिली है इस महत्ती आवश्यकता के क्षणों में वेंटिलेटरों, डायगनोस्टिक्स, सेनेटाइजर पीपीई किट,मास्क नवीन, निम्न लागत, सुरक्षित एवं कारगर समाधान में कोविड-19 पर नियंत्रण के लिए।
साथ ही इसके साथ ही दुष्परिणाम भी है लोगो का डाटा चोरी होना, तथा उनकी निजी जानकारी को हैकर द्वारा हैक करना !
यह वास्तव में कॉविड-19 के उपरांत सामाजिक - आर्थिक उत्थान में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी की भूमिका अग्रिणी तथा बहुत ही महत्वपूर्ण रही हैं



                                                    - Tatya'Luciferin'

पहले क्या भूखमरी या कोरोना वायरस


पहले क्या भूखमरी या फिर कोरोना वायरस

जी नहीं पहले भूखमरी इसके बाद कोरोंना वायरस क्यों कि कोरोना वायरस तो अभी आया हैं उसके पहले भी भूखमरी देश में व्याप्त रही हैं। आगे रहेंगी या नहीं इसकी कोई खास गारंटी नहीं है लेकिन फिर भी यहां हम सबके लिए एक बहुत ही भयानक बात साबित हो रही है तमाम भौतिक संसाधनों के बावजूद भी हम देश व्यापी समस्या से उभर नहीं पाए सरकार पहले भी थी सरकार आज भी है लेकिन हम इस समस्या से उभरे नहीं हैं
यह सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन सरकार सहयोग करे तो सरकार कितने फूट-पाथ पर दिन गुजर रहे लोगो की समीक्षा कब की कब उन्होंने सरकार को होने का अहसास दिलाया है भुखमरी के कारण भोपाल शहर के रोशनपुरा चौराह,बोर्ड ऑफ़िस चौराह तथा ट्रैफिक चौराहों पर देश के ऐसे कई बड़े - बड़े शहरों के चौराहों पर बच्चे पर अपने पैठ पालने के लिए दर बदर कुछ पेपर की गड्डी लेकर घूमते रहते हैं दिन भर ट्रैफिक के बीच अपनी जिंदगी को हमेशा मोटर वाहनों के बीच पालते है क्या ये देश का भविष्य नहीं ?
भुखमरी देश के बड़े - बड़े शहरों की यही सच्ची कहानी हैं यह भूख 1943 में भी बरकरार थी और आज 2020 में भी बर करार है
देश ने सभी मायनों में हर क्षेत्र में यह तक की हम अन्तरिक्ष में भी अपना झंडा लहरा चुके है लेकिन हम भुखमरी नहीं मिटा सके। ओर न ही ये सरकारेे
कोराना इन दिनों खबरों की फेहरिस्त में सबसे ऊपर है होना भी चाहिए, चीन से शुरू होकर यह दुनिया भर में पैर पसार चुका है ऐसे में खबर को सबसे ऊपर होना भी चाहिए पर, कोरोना वायरस के फैलाव की खबर इतनी अधिक फैल चुकी है कि हमने उन खबरों को तवज्जो देना ही बंद कर दिया, जो वाकई शर्मनाक ही हैं समाज के लिए भी और सरकार के लिए भी और शायद इस बदनामी से बचने के लिए ही राज्य सरकारें अमूमन ऐसी खबरों को झूठी खबर बताकर पल्ला झाड़ लेती है।
कोराना के विस्तार के समय में जब प्रशासन से लेकर लोकमानस की चिंता में सार्वजनिक स्वास्थ्य ही प्रमुखता में है, जब केंद्र और राज्य सरकारें भी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए कमर कस चुकी हैं। हैंड सेनेटाइजर से लेकर मास्क और फोन के कॉलर ट्यून तक बदले जा रहे हैं ताकि जागरूकता फैले, लोग बचें और बचाएं।
खबरिया चैनलों में भी लगातार इस पर बहसें और चर्चाएं चल रही हैं, धर्मगुरु अलग मंत्र दे रहे, कुछ लोग क़िस्म-क़िस्म के हवन और गोमूत्र पार्टियों का आयोजन कर रहे हैं. ऐसे में, भूख से हो रही मौत की खबर न तो बिकने लायक है न दिखने लायक। भुखमरी की मौत रोमांच पैदा नहीं कर रही.
अब जब सरकारें देश की जनता के स्वास्थ्य और किसी बीमारी को लेकर इतनी जागरूक हो रही है तो ऐसे में सरकार का ध्यान भुखमरी जैसी समस्या की ओर भी आए इसलिए इस पर भी लिखना में ज़रूरी समझा चाहे कि आदमी जिंदा रहेगा तभी तो किसी वायरस से बचेगा!
यह घटना 2016 से लेकर अब तक झारखंड में 23 लोग भूख के कारण मरे हैं।
अब एक नजर भुखल घासी की मौत पर। यह जानकारी 7 मार्च, 2020 को रांची से प्रकाशित अखबारों में सामने आयी कि भूखल घासी  की मौत भूख से हो गई। खबर के मुताबिक भूखल घासी के घर में चार दिनों से चूल्हा नहीं जला था।
                        मृतक भुखल घासी व परिवार
खबर सामने आते ही सरकारी तंत्र लीपापोती में जुट गया। झारखंड सरकार के खाद्य आपूर्ति एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव, निदेशक, उपायुक्त, जिला आपूर्ति पदाधिकारी समेत कई अधिकारी कसमार प्रखंड मुख्यालय से मात्र पंद्रह किमी दूर करमा शंकरडीह पहुंचे, घटना की जानकारी ली और थोक भाव में संवेदना भी व्यक्त की। इतना ही नहीं, सरकारी तंत्र ने अपना कसूर स्वीकारने के बजाय स्थानीय प्रखंड विकास पदाधिकारी, विपणन अधिकारी व सिंहपुर पंचायत के मुखिया को डांट-फटकार भी लगाई।
फिर इसके बाद वही हुआ जो आमतौर पर होता है कि पीड़ित परिवार पर सरकारी कृपा जमकर बरसायी जाती है।
मृतक भूखल घासी के परिजनों के उपर भी सरकारी कृपा जमकर बरसी। पीड़ित परिवार को कई सुविधाएं एक साथ ऑन द स्पॉट मुहैया कराई गईं। मसलन, मृतक की पत्नी रेखा देवी के नाम पर तुरंत राशन कार्ड बनवाकर दिया गया। साथ ही तुरंत उसके नाम पर विधवा पेंशन की भी स्वीकृति हो गयी। आंबेडकर आवास की भी स्वीकृति हो गयी। इसके अलावा मृतक की पत्नी रेखा देवी के नाम पर पारिवारिक योजना का लाभ स्वीकृत कर 10 हजार रुपए का तुरंत भुगतान कर दिया गया। सचिव द्वारा बाकी 20 हजार रुपए खाता खुलवाकर जल्द से जल्द ट्रांसफर करने का निर्देश दिया गया।
               मृतक भुखल घासी का घर व उसके परिजन

सरकारी संवेदनशीलता कहिए या फिर सरकारी कृपा तब नहीं बरसी थी जब भूखल घासी जिंदा थे। करीब एक साल पहले से भूखल घासी का स्वास्थ्य खराब था। वह कमाने लायक नहीं था। ऐसी स्थिति में उसे और उसके परिवार वालों को खाने के लाले रहे। तब किसी ने भी उसकी सुध नहीं ली। सरकारी दस्तावेजों में भूखल घासी के पास नरेगा रोजगार कार्ड भी था, जिसकी संख्या – JH-20-007-013-003/211 है। कार्ड पर उल्लेखित विवरण के मुताबिक उसे फरवरी  2010 के बाद से कार्य उपलब्ध नहीं कराया गया है। दूसरी तरफ उसका नाम बीपीएल पुस्तिका की सूची संख्या 7449 में दर्ज होने के बावजूद उसका सरकारी राशन कार्ड नहीं बना था। कारण यह है कि पूरा प्रखंड दलालों के कब्जे में है। वे ही तय करते हैं कि किसे सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए और किसे नहीं।
क्या ये सारी सुविधाएं भुखल को पहले मिल जाती तो शायद उसकी जिदंगी बच जाती ओर उसके परिवार को सुना छोड़ कर नहीं जाना पड़ता ।
यही भुखमरी का मुख्य व मूल कारण है जिसे समस्त राज्यो की सरकारेे ध्यान नहीं देती है बस आंकड़ों में ही तल्लीन रहती है
यही काफी नहीं है कि अब कोरोना वायरस ने लोगो की जान ले ली है इसने बहुत से गरीब मजदूरों को बेबस कर दिया है लोग कोरोना वायरस से ज्यादा बीमार भूख से मर गए है
राम जी महतो दिल्ली से बिहार के बैगुसराय अपने गांव पैदल ही चल दिए लेकिन पता नहीं कितने दिन से भूखे थे अपने घर पहूचने से पहले ही उन्होंने बनारस में दम तोड़ा
दिया देखिए इस तस्वीर को।
                              मृतक रामजी महतो

दूसरी नजर उनके पैठ को देखे यह पता नहीं चल पा रहा कितने दिन से भूखे होंगे ।
तकरीबन सभी मजदूरों के पास खाने और रहने कि उचित व्यवस्था नहीं है और सभी मकान मालिक ने किरायदार को कमरा खाली करने कह दिया है तथा फैक्ट्रियों के कर्मचारियों को फैक्ट्रियों के मालिकों ने निकाल दिया जिससे भुखमरी का शिकार हो गए है दिल्ली की सड़कों पर लाखों की संख्या में मजदूर अपने घर की ओर पलायन कर रहे है अब अपने गांव पैदल जाने को तैयार हो गए है अब इसे में कहा उनकी रोटी ओर कहा उनका खाना पीना लोग चल चल कर भी मर गए है
इस तरह कुछ रिपोर्ट इस प्रकार हैं
भुखमरी की स्थिति में कोई सुधार नहीं, भारत 102 स्थान पर; पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका से भी पीछे -
https://f87kg.app.goo.gl/mUgQjLkgqeEnSbNh7संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में सबसे अधिक 19.4 करोड़ लोग भारत में भुखमरी के शिकार हैं. यह संख्या चीन से अधिक है.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन (AFO) ने अपनी रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फूड इनसिक्योरिटी इन द वर्ल्ड 2015’ में यह बात कही है. इसके अनुसार दुनियाभर में यह संख्या 2014-15 में घटकर 79.5 करोड़ रह गई, जो कि 1990-92 में एक अरब थी.
हालांकि भारत में भी 1990 तथा 2015 के दौरान भूखे रहने वाले लोगों की संख्या में गिरावट आई. 1990-92 में भारत में यह संख्या 21.01 करोड़ थी, जो 2014-15 में घटकर 19.46 करोड़ रह गई.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत ने अपनी जनसंख्या में भोजन से वंचित रहने वाले लोगों की संख्या घटाने में अहम प्रयास किए हैं, लेकिन एफएओ के अनुसार अब भी वहां 19.4 करोड़ लोग भूखे सोते हैं. भारत के अनेक सामाजिक कार्य्रकम भूख व गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहेंगे, ऐसी उम्मीद है.’
हालांकि, इस अवधि‍ में चीन में भूखे सोने वाले लोगों की तादाद में अपेक्षाकृत तेजी से गिरावट आई. चीन में यह संख्या 1990-92 में 28.9 करोड़ थी, जो 2014-15 में घटकर 13.38 करोड़ रह गई.
रिपोर्ट के अनुसार, AFO की निगरानी दायरे में आने वाले 129 देशों में से 72 देशों ने गरीबी उन्मूलन के बारे में सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को हासिल कर लिया है।
UN रिपोर्ट - https://aajtak.intoday.in/story/194-million-people-starved-for-food-in-india-in-2014-2015-1-814656.html

कोविड-19 की महामारी के बीच UN की चेतावनी, 'जल्‍द ही दुनियाभर में दोगुनी हो सकती है भुखमरी के शिकार लोगों की संख्‍या'
विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डेविड बीस्ले ने कहा, ''अभी अकाल नहीं पड़ा है लेकिन मैं आपको आगाह करना चाहूंगा कि अब अगर हमने तैयारी नहीं की और कदम नहीं उठाए तो आगामी कुछ ही महीनों में हमें इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है.
दुनिया में इस समय 13 करोड़ 50 लाख लोग भुखमरी या उससे भी बुरी स्थिति का सामना कर रहे हैं
संयुक्त राष्ट्र: Coronavirus Pandemic: संयुक्त राष्ट्र (UN) के निकाय विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme) ने आगाह किया है कि दुनिया ''भुखमरी की महामारी'' के कगार पर खड़ी है और अगर वक्त रहते जरूरी कदम नहीं उठाए गए कुछ ही महीने में भुखमरी (Hunger) के शिकार लोगों की संख्या में भारी इजाफा हो सकता है. गौरतलब है कि दुनियाभर में 25,65,290 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं, जिनमें से पौने दो लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डेविड बीस्ले ने मंगलवार को ''अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा अनुरक्षण: संघर्ष से उत्पन्न भूख से प्रभावित आम नागरिकों की सुरक्षा'' विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सत्र के दौरान कहा, ''एक ओर हम कोविड-19 (Covid-19) महामारी से लड़ रहे हैं वहीं, दूसरी ओर भुखमरी की महामारी के मुहाने पर भी आ पहुंचे हैं.''
उन्होंने कहा, ''अभी अकाल नहीं पड़ा है लेकिन मैं आपको आगाह करना चाहूंगा कि अब अगर हमने तैयारी नहीं की और कदम नहीं उठाए तो आगामी कुछ ही महीनों में हमें इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है. इससे निपटने के लिये हमें फंड की कमी और कारोबारी बाधाओं को दूर करने समेत कई कदम उठाने होंगे.'' बीस्ले ने कहा कि कोविड-19 के चलते दुनिया वैश्विक स्वास्थ्य महामारी ही नहीं बल्कि वैश्विक मानवीय सकंट का भी सामना कर रही है. उन्होंने कहा कि संघर्षरत देशों में रहने वाले लाखों नागरिक, जिनमें कई महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, भुखमरी के कगार पर हैं.
बीस्ले ने कहा कि पूरी दुनिया में हर रात 82 करोड़ 10 लाख लोग भूखे पेट सोते हैं. इसके अलावा 13 करोड़ 50 लाख लोग भुखमरी या उससे भी बुरी स्थिति का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ''विश्व कार्यक्रम के विश्लेषण में पता चला है कि 2020 के अंत तक 13 करोड़ और लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच सकते हैं. इस तरह भुखमरी का सामना कर लोगों की कुल संख्या बढ़कर 26 करोड़ 50 लाख तक पहुंच सकती है.''

कोविड-19 की महामारी के बीच UN की चेतावनी, 'जल्‍द ही दुनियाभर में दोगुनी हो सकती है भुखमरी के शिकार लोगों की संख्‍या' - NDTV https://khabar.ndtv.com/news/world/global-hunger-could-double-due-to-coronavirus-pandemic-un-2216318

इन तमाम मामलों तथा घटनाओं को। देख कर हमे कोरोना वायरस से नहीं बल्कि भूखमरी से मर रहे लोगो की जान बचाना होगी क्यों कि आने वाले समय में हमे बहुत ही विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा । एक तरफ जीडीपी की गिरावट और एक तरफ भावी हुआ पीढ़ी का नोकरी से निकाल देना एक तरफ का भूकमारी को बढ़ावा देने से कम नहीं हैं
वास्तव में यह चिंतन तथा जरूरत लोगो को मदद करने का अवसर हैं ।
ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगो को भूख की इस महामारी से बचाया जा सकेगा ।
सभी राज्यों की सरकार अपने अपने स्तर पर सुविधाएं मुहैया करा रही लेकिन वह अंतिम आदमी तक पहुंचाने में असफल हुई है इसके साथ ही बहुत सारे सामाजिक कार्यकर्ता तथा अन्य सामाजिक एनजीओस जो भूख को मिटाने में अपनी महती भूमिका निभा रहे।
मैं भी एक ऐसे NGO से जुड़ा हूं जिसका नाम जीवन सार्थक है वह अब तक 50000 हजार लोगों को भोपाल शहर के जरुरत मंद लोगो को खाना खिलाने में अपना योगदान दे रहा हैं साथ ही साथ जरूरतमंद को ब्लड डोनेट करने का काम भी बखूबी कर रहा है हमारी पूरी टीम को बधाई तथा शुभकामनाएं नए आयाम को गढ़ने के लिए ।
इसके साथ एनएसएस के माध्यम से हम लोगो को अंधविश्वासों व अफ़वाए से बचाने का तथा जागरूक करने का काम भी कर रहे है
ताकि लोगो का मनोबल बड़े व उन्हें आत्मबल मिल सके।
इन तमाम मुद्दों को ध्यान में रखते हुवे हम भूखमरी और कोरोना वायरस के प्रकोप से घिर चुके हैं लॉकडॉउन का यह तीसरा चरण आ पड़ा है
और भूखमरी अभी खत्म नहीं हुई बल्कि बढ़ती जा रही है साथ ही दूसरे अन्य राज्यों में फंसे मजदूर एवम् छात्र यह अपने घर लौटना अभी बाकी है
तो हमारे सामने वही सवाल आ गया है.....
जी हां पहले क्या भुखमरी या फिर कोरोना वायरस.....?
ओर इसे हमे मिटाना है ।

संतोष तात्या
- Tatya 'Luciferin'

कभी हस भी लिया करो

कभी हस भी लिया करो
निश्चित ही यह वाक्य अब मानव मात्र व समुदाय से कहीं ना कहीं गायब होते जा रहे हैं एक तरफ मनोरंजन के क्षेत्र में हंसी थीठोले मस्ती नटखट अदाएं वाले नाटक प्रोग्राम आज मनोरंजन के उच्च स्तर के साधन बने हुए हैं क्या यह पर्याप्त नहीं था जो मोबाइल ने इसको पीछे धकेल दिया आज कितने ऐसे एप्लीकेशन मौजूद है जैसे :- tiktok,helo,likes,Vmate,kwai और sharechat आदि अनेक एप्लीकेशन वर्तमान में मौजूद हैं जिस पर काफी सारा वक्त गुजार कर अपने आप को तनाव मुक्त एवम् बिना आत्म चिंतन के हंसाया गुदगुदाया जा सकता है तथा इंटरनेट की दुनिया में इस प्रकार की वेशभूषा से भरपूर उपहार सामग्री आपको परोसी जा रही हैं निश्चित ही वह दौर चला गया जिसमें आत्मीय सुकून सकारात्मक ऊर्जा तथा मानव हित से परिपूर्ण बातें होती रही है लेकिन वर्तमान में इसके विपरीत है जो हमें हंसाने में तो कामयाब हुआ है लेकिन उसका सामाजिक प्रभाव । 
उदाहरण :- हम सब ने "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" धारावाहिक देखते आ रहे हैं जो आज के समय में अपनी चरम सीमा पर है
दया और जेठालाल के द्वारा जिस प्रकार चुटकुले हंसी ठिठोली काबिले तारीफ है लेकिन एक और वह बारिक हिस्सा जो हम सब देखते हैं लेकिन समझने की आज तक हमने कोशिश ही नहीं की जो आने वाले समय में बच्चों के दिमाग में सकारात्मक ऊर्जा कभी नहीं उत्पन्न कर सकता !
जी हां । मैं उस बारिक हिस्से की बात कर रहा हूं जिसमें जेठालाल की नजर बबीता जी के ऊपर पढ़ते ही एक विशिष्ट परिस्थिति को निर्मित करते हैं जिसमें बबीता जी के प्रति उनका लार टपकाना ।
आप सोचिए ? जिसके पास इतनी सुंदर पत्नी है हंसी ठिठोली के लिए वह अपना प्यार दुलार बबीता जी के लिए संजोए फिरता है

मुझे सोचने के लिए मजबूर तब किया जब हम उस समय इस धारावाहिक तारक मेहता का उल्टा चश्मा घर पर सपरिवार देख रहे थे उसमे बैठा हुआ मेरे पास नन्ना बच्चा तकरीबन 9 से 10 साल का जेठालाल और बबीता के प्रसंग को देखते ही बोल पड़ा !
जैसे ही जेठालाल बबिता के देखे येके लाल टपकने लागीं जाए (मालवी भाषा में लिखा है आप 2 बार पढ़ें)
क्या ? उस बच्चे की प्रसंग को देखकर वास्तविक भावना जागृत हुई क्या वह सकारात्मक हंसी कहलाएगी ?
हालांकि खुशी खुशी होती हैं खुशी की कोई सही परिभाषा नहीं हो सकती; खुशी तब होती है जब आपको लगता है कि आप दुनिया के शीर्ष पर हैं जहां पूर्ण संतुष्टि की भावना प्रबल है
हम सभी खुश रहना चाहते हैं,
लेकिन बहुत-से लोग खुश नहीं हैं। जानते हो क्यों? क्योंकि उन्हें नहीं पता कि खुशी कैसे पायी जा सकती है। वे सोचते हैं कि ढेर सारी चीज़ें होने से खुशी मिलती है। लेकिन जब उन्हें वे चीज़ें मिल जाती हैं तो उनकी खुशी ज़्यादा दिन तक नहीं टिकती।
खुश रहने का एक राज़ है। उसके बारे में महान शिक्षक ने कहा: “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।” तो अब बताओ खुश रहने का राज़ क्या है?— हाँ, अगर हम दूसरों को कुछ देंगे या उनके लिए कुछ करेंगे, तो हमें खुशी मिलेगी। क्या आपको यह बात पता थी?
चलो इस बारे में थोड़ा और सोचते हैं। क्या यीशु के कहने का यह मतलब था कि जिसे तोहफा मिलता है क्या वह खुश नहीं होता?— नहीं, उसके कहने का यह मतलब नहीं था। जब कोई आपको तोहफा देता है तो आपको अच्छा लगता है ना?— सबको अच्छा लगता है। जब हमें कोई अच्छी चीज़ मिलती है तो हमें खुशी होती है।
अब हम इस पर थोड़ा और जोर डालते हैं
टीआई इंदौर कोरोना काल में महीने भर से ड्यूटी कर रहे थें उन्हें सबसे ज्यादा खुशी तब हुई जब उन्हें पता चला की मुझे वीकली ऑफ(साप्ताहिक छुट्टी) मिला है
वह सुबह से ही बहुत खुश हैं क्योंकि उनके 28 वर्ष के कार्यकाल में पहली बार उन्हें वीकली ऑफ(साप्ताहिक छुट्टी) मिला !

इस तरह की खुशी इस तरह का तोहफा जो हमें सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है तथा भविष्य की नई योजना बनाने में मार्ग प्रशस्त करता है
निश्चित ही हमें हंसी ठिठोली करना चाहिए इससे मानव मस्तिष्क के आंतरिक तनाव दूर होते हैं साथ ही विभिन्न प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिलती है
निर्देशक अश्विनी धीर के निर्देशन में बनी फिल्म 'सन ऑफ सरदार' जिसमें एक्टर अजय देवगन हंसने की बात कहते हैं "ओ पाजी कभी हंस🤣 भी लिया करो।"
जी हां खुशी खुशी होती है मेरे घर पर एक बकरी है मैंने एक प्रयोग किया उसके दो बच्चे हैं जो महज 5-6 महीने के हैं जब वह दिन भर चरने के बाद शाम को घर लौटी तो मैंने एक बच्चा उसके साथ बांध दिया व दूसरा बच्चा(मेमना)घर के अंदर को समय 5:00 ही बज रहे थे
लेकिन वहां जब तक चीखती रही जब तक उसका बच्चा(मेमना) मैंने उसके पास ना बांधा ।
बच्चे को पास पाते ही वहां उसे प्यार दुलार अपनी जिव्हा से चाटने लगी ।

यहां उसकी वास्तविक खुशी थी
इस प्रकार हमारी भी वास्तविक खुशी इन सारे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से संभव नहीं है
उसके लिए हमें अपनो के लिए वक़्त निकालना ही होगा। तभी हम एक सकारात्मक समाज को जन्म दे  पाएंगे !

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जिससे हमें ऊर्जा मिले.....
और हंस भी लिया करो....



-Tatya 'Luciferin'

परेशानी किसको कहा


परेशानी किसको कहा 

आज जो हम देख रहे हैं वह बहुत ही भयानक समय के पूर्णता विपरीत है जिसकी कल्पना करना मूर्खता होगी लेकिन यह कब यथार्थ में बदल गई इसकी कल्पना न आपने की न मैंने लेकिन यथार्थ यथार्थ रहता है प्रश्न यह है कि वह कौन सा यथार्थ है जो यथार्थ बोलने पर ज्यादा बल दे रहा है
गरीबी उन्मूलन का या अमीरी उन्मूलन का समझ नहीं आता एक तरफ लोग इत्मीनान से रामायण महाभारत व अन्य भौतिक संसाधनों से अपने घर में ही रहकर अपने परिवार के साथ वक्त साझा कर रहे हैं लेकिन एक तबका ऐसा भी है समाज का जो दिहाड़ी मजदूर रोज खाने रोज कमाने वाला है न तो उसके सिर पर छत है और न ही पेट के लिए रोटी ऐसे में हम कैसे कह सकते हैं भारत तमाम मुश्किलों का सामना करने के लिए तैयार है हम दूसरे देशों को किस तरह की शिक्षा दे रहे हैं क्या यह यथार्थ नहीं है ?
जो लोग अपने घर पर जाने के लिए मिलो दूरी पैदल जाने के लिए मजबूर हैं और एक तरफ वह लोग जो इस महामारी को हवाई जहाज में लेकर आए और इन गरीबों के ऊपर सारा ठीकरा फोड़ दिया क्या यह यथार्थ नहीं है हम किस तरह भारतीयता कि बात करते हैं क्या इस महामारी से निपटने के लिए कुछ और दिन पहले इसकी सारी सावधानियां सरकार के ध्यान में नहीं आई और आएगी भी क्यों क्योंकि यह तो अमीरों के साथ चल कर आई है मुझे आप बता दीजिए आपके गांव का कोई भी ऐसा शख्स जो इस बीमारी को चीन के उहान शहर से लेकर आया शायद आपको तो चीन और चाइना मैं भी फर्क नहीं मालूम है तो फिर आप यह कैसे समझेंगे अपने परिवार और आसपास वालों को कि यह बीमारी विदेश से भारत कैसे आई जो आज गरीबों की कमर तोड़ रही है
उन्हें मजबूर कर रही है अपने परिवार से मिलाने को
उन्हें मजबूर कर रही है अपने घर जाने को
उन्हें मजबूर कर रही है खाने को
उन्हें मजबूर कर रही है खुद की भूख से पहले जान बचाने को....
क्या यह यथार्थ नहीं है यदि यथार्थ यह नहीं है तो हम फिर किसे    कहेंगे उन परिवारों को जो अपने घरों में मनोरंजन के लिए महाभारत रामायण व अन्य भौतिक सुख सुविधाओं का लाभ उठा रहे है या फिर उन्हें जो इस महामारी को उपहार स्वरूप लेकर आएं जो 1 दिनों में हजारों लोगों से मिलते हैं यदि 1 दिन ना मिले तो उनकी फैन फॉलोइंग कम हो जाती है उनके अनुसार या फिर यथार्थ का मतलब वह गरीब है जो मिलो दूरी तय कर अपने घर भी नहीं पहुंच पा रहा है खाने के लाले पड़े हुए हैं जिस की तादाद अब लाखों में दिल्ली सहित पूरे  के  रोड पर नजर आ रही है आप और हम जिम्मेदार किसे ठहराएंगे मारने वाले को या बचाने वाले को इसमें बचाने वाला यथार्थ है या मरने वाला यथार्थ है यह प्रश्न अपने आप से पूछिए क्या कहता है मुझे नहीं लगता कि आप इस प्रश्न से संतुष्ट होंगे क्योंकि यह मुद्दा एक सिक्के का दो पहलू बना हुआ है जीत और पठ दोनों ही उनके हैं जिन्होंने यह ठोस निर्णय इस महामारी से बचने के लिए लिया है और हम उसका पुरजोर समर्थन करते हैं लेकिन हम उन्हें भी अपने समाज से अलग नहीं देखना चाहते जिन पर जबरदस्त लाठीचार्ज हो रही यह उनकी कताई गलती नहीं है यह लाठी या डंडे या मेडिकल उपचार उस समय ही हो जाना चाहिए था जब अन्य देशों में इस महामारी का शुमार चल रहा था लेकिन ऐसा नहीं हुआ हमने उस अंतिम तबके को अंजाम दिया जिसकी गलती कभी थी ही नहीं हमें यदि इस तरह का पूर्वाभास होता तो हम सभी उसके प्रति एकजुट होकर उससे निपटने के लिए तितर-बितर ना होते खासकर वह गरीब मजदूर जो दिहाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण करता है वह सिर्फ सुबह और शाम के भोजन की व्यवस्था प्रतिदिन करता है उसे पता नहीं था इस तरह की भुखमरी का भी सामना करना पड़ जाए जो किसी भी मजदूर के मूल स्वभाव के विपरीत है यथार्थ हम किसे कहेंगे एक बार और सोच ले और इस लाठी खाने वालों और गरीब तबके मैं से जिम्मेदार कौन लाठी खाने वाला या फिर वह जो लाठी मारने वाला..........?
आपके लिए यह प्रश्न छोड़ रहा हूं
यथार्थ क्या................?


-Tatya'Luciferin'