मार्टिन की खोज

                                                                 मार्टिन की खोज 

हां एक समुदाय में खुशी की लहर दौड़ उठी थी जिस समय प्रेसिडेंट लिंकन ने "आजादी का घोषणा पत्र" (इमेंसिपेशन प्रोक्लमेशन) जारी किया था कई पीढ़ियों से ढोते आ रहे अश्वेत लोग या यूं कहें गुलाम अश्वेत समुदाय जिनको चर्च में जाने की भी अनुमति नहीं थी 
श्वेत लोग अश्वेत लोगों को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे इस समुदाय को सामाजिक, आर्थिक बराबरी, वैभव, समरसता का भाव तथा राजनीतिक अधिकारों से कोसों दूर रखा गया था लेकिन वक्त का पहिया जब अपनी रफ्तार से चलने लगा जब अश्वेत समुदाय का उत्थान धीरे-धीरे शुरू होने लगा था "रिकंस्ट्रक्शन एक्ट" को पास हुए एक दशक भी नहीं हुआ था कि अमेरिका में नीग्रो समुदाय को भयानक अमानवीयता का सामना करना पड़ा। इस तरह की घटना पहली बार नहीं हुई थी यह कई दशकों से चला आ रहा था इन्हीं सबके बीच सन 1899 में नीग्रो समुदाय के परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ जिसका नाम माइक किंग रखा गया । इस बच्चे के दौर में भी व्यवस्था जो कि त्यों ही थी, यानी जैसा चला आ रहा था वैसा ही चल रहा था बहुत से अश्वेत समुदाय के लोगों का बचपन, जवानी और बुढ़ापा मूलधन और ब्याज चुकाने में ही खप जाता था। माइक किंग भी एक सामान्य परिवार से होने के कारण उन्हें भी बहुत कुछ सहना पड़ा। तथा इन्हीं कारणों के चलते दो वक्त की रोटी के लिए छोटी सी उम्र में ही काम करना पड़ता जिसमें अश्वेत समुदाय के बच्चे ही अधिकतर हुआ करते थे

एक तरफ गरीबी, भुखमरी तथा बेरोजगारी से बुरा हाल और दूसरी तरफ यह चिंगारी श्वेत, अश्वेत की हर किसी शहर में दिवाली के पटाखों जैसी जलती हुई दिखाई दे रही थी जिसमें दक्षिण अमेरिका का सबसे बड़ा एवं प्रगतिशील शहर 'अटलांटा' भी इस क्रूरता की जाल में उलझा हुआ था सन 1906 में जातीय दंगों में सैकड़ों अश्वेत लोगों का नरसंहार हुआ। इन्हीं सबके बीच 'माइक किंग' का विकास धीरे-धीरे हो रहा था वातावरण के अनुकूल होने के कारण 'माइक' पादरी के प्रवचनों को हमेशा सुनते एवं उसका अनुसरण करने की कोशिश करते रहते इसका मुख्य कारण घर चर्च के पास होना था पादरी के प्रवचन उन्हें अध्यात्मिक जीवन की ओर ले जा रहा थे सन् 1924 में मां के मरने के बाद 'माइक किंग' का नाम 'मार्टिन लूथर किंग' के नाम से प्रयोग में होने लगा लेकिन सब उन्हें प्यार से 'माइक' हीं बुलाते थे माइक ने हाई स्कूल डिप्लोमा किया था फिर उनका विवाह प्रसिद्ध धर्मगुरु ए.डी. की पुत्री जिसका नाम 'एल्बर्टा विलियम्स' था दोनों ने सन् 1926 में 'धन्यवाद दिवस' (थैंक्स गिविंग डे) पर विवाह किया पहली संतान 'विली क्रिस्टीन' को जन्म दिया। इसके बाद सन् 1929 में दूसरे बच्चे को जन्म दिया गलती से बच्चे का नाम 'माइकल लूथर किंग' लिखा गया । जिसको 28 साल बाद एक देश से दूसरे देश जाने पर पासपोर्ट में नाम ठीक कर 'मार्टिन लूथर किंग जूनियर' रखा गया बस यहीं से मार्टिन कि उत्पति हुई मार्टिन अपने पिता की दुसरी संतान थे । 'मार्टिन लूथर किंग जूनियर' की बाल अवस्था चर्च आध्यात्मिकता में बीती लेकिन अश्वेतों पर श्वेतों द्वारा अत्याचार, क्रूरता थमने का नाम ही नहीं ले रही थी
'मार्टिन लूथर किंग जूनियर' को उस वक्त झटका लगा जब वह अपने दोस्त के साथ खेल रहे थे अपने मित्र की मां द्वारा जो व्यवहार किया उससे वह बहुत आहत हुए जबकि उनकी उम्र मात्र 6 वर्ष थी ‘मार्टिन’ अपने दौर में श्वेतों के अत्याचारों से बहुत परेशान थे लेकिन इन सभी परिस्थितियों के बावजूद मार्टिन में बोलने और भाषण देने की गजब की कला छुपी हुई थी । इसका प्रमुख कारण घर के पास चर्चा होना था जैसा उनके पिता माइक की परवरिश हुई ठीक वैसी ही 'मार्टिन लूथर किंग जूनियर' की हुई पादरी के प्रवचनों को अनुसरण करने से उन्हें मानसिक मजबूती मिलती थी मार्टिन उस दौरान कॉलेज में थे उस समय 'द्वितीय विश्व युद्ध' में हिस्सा लेने की बात चल रही थी नौकरी कि भी अपार संभावनाए खुलती जा रहीं थी पहले अश्वेतों को नौकरी नहीं दी जाती थी नीग्रो समुदाय ने जनवरी 1941 में वाशिंगटन में करीब एक लाख लोग सरकार की रंगभेद नीति के विरुद्ध प्रदर्शन करने का निश्चय किया लेकिन किन्हीं कारणों से यह प्रदर्शन हो नहीं पाया प्रदर्शन के पहले वहां की सरकार में भय बना हुआ था इससे ‘प्रेसिडेंट रुजवेल्ट’ इतने दबाव में आ गए उन्होंने इसके लिए एक कमेटी बनाई और आनन-फानन में एक सरकारी आदेश जारी
करके अश्वेत लोगों के लिए नौकरी के गेट खोल दिए उद्योग धंधा एवं अन्य व्यापार में लोगों की कमी के चलते खपत बडी और युद्ध भी खींचा चला जा रहा था बात सन् 1944 की है जब दोनों समुदाय श्वेत, अश्वेत हजारों की संख्या में कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रहे थे करीबन 10 लाख लोग सेना में थे जिसमें से भिन्न-भिन्न समुदाय के लोग भी शामिल थे इतनी अपार संभावनाएं नीग्रो लोगों को पहले कभी नहीं मिली थी मार्टिन कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ मानसिक चिंतन किया करते थे उन्हें देश दुनिया में क्या चल रहा है उसका थोड़ा बहुत ज्ञान था ।
मार्टिन की पढ़ाई एक ऐसे कॉलेज से हो रही थी जिसका नाम 'मोर हाउस कॉलेज' था जिसमें केवल अश्वेत बच्चे ही पढ़ते थे कॉलेज की विभिन्न गतिविधियों में अपनी सक्रिय भागीदारी भी निभाते थे एक बार उन्हें कॉलेज का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला या यूं कहें की सदस्य के रूप में कॉलेज से चुन कर गए थे जिसमें भिन्न समुदाय के छात्र व अलग-अलग कॉलेज के छात्र मौजूद थे उन्हें 'इंटर कॉलिजिएट गेट काउंसिल' में खुलकर बोलने का मौका मिला । ‘मार्टिन’ ने जब अपनी भाषा और तार्किकता का बाण अन्य समुदायों व श्वेतों के सामने चलाया तो वह मार्टिन के कायल हो गए इनकी बात से कुछ श्वेत छात्र भी अपने आप को असहज महसूस करने लगे कि हमारे पुर्खों ने अश्वेतों पर किस तरह का जुल्म किया उस दौर में अत्याचार अपनी चरम सीमा पर था लेकिन ‘मार्टिन’ के बहुत से दोस्त ऐसे भी थे जो मार्टिन की बात का समर्थन करते थे और उनकी मदद भी करते थे नौकरी के दौरान उन्होंने 'सदर्न स्प्रिंग बेड मैट्रेस कंपनी' मैं नौकरी का अवसर मिला ! काम एक समान हुआ करता था लेकिन वेतन दोनों का अलग-अलग होता था यह विचार मार्टिन के मन में कई दिनों तक बेचैन करता रहा, कि काम एक समान........... लेकिन वेतन अलग-अलग..............
यदि कार्य में किसी प्रकार की कमी रहती तो वह अश्वेतों पर डाल दी जाती थी या दोषी ठहराया दिया जाता था काम बराबर वेतन कम और ताने भी भरपूर मिलते थे यह कहां का न्याय है यह प्रश्न चिन्ह? मार्टिन के दिमाग में गूंजने लगा उन्हें परेशान करने लगा। उन्होंने इन्हीं कारणों के चलते नौकरी से इस्तीफा दे दिया मार्टिन के दिमाग में ना जाने कितनी सारी समस्याओं की गठरी बंधी हुई थी वह चाहते तो कहीं भी नौकरी कर लेते लेकिन उन्होंने श्वेत अश्वेत या काले गोरे का भेद को जड़ से खत्म करने का दृढ़ निश्चय किया कि मैं इसको जड़ से मिटा कर ही रहूंगा इसके लिए मुझे कितनी ही समय देना पड़े, मैं तैयार हूं और वह आगे बढ़ गए अपनी यात्रा के लिए, इस यात्रा में न जाने कितने लोगों से संपर्क हुआ 

लेकिन मार्टिन कभी डरे नहीं, झुके नही यह आग उनके सीने में निरंतर जलती रही और ‘मार्टिन’ आगे बढ़ते गए क्योंकि मार्टिन भाषण देने में माहिर थे इसके साथ उनका अथक ज्ञान, गहरी सोच तथा बेहद आकर्षण व्यक्तित्व था इन्हीं सब विचारों और प्रभावी मानकों से 'मार्टिन लूथर किंग जूनियर' का की खोज हुई।
जो बाद में अमेरिकी अफ्रीकी के नागरिक अधिकार, श्वेत अश्वेत के भेदभाव, मतदान के अधिकार, अलगाव, श्रम अधिकार, तथा दक्षिण अफ्रीका के गांधी के साथ-साथ ना जाने कितने सारे आंदोलनों में भाग लेकर पूरी दुनिया के लिए एक मसीहा बने। 

 - संतोष तात्या (Tatya Luciferin) 
   कवि, शोधार्थी 


लेख का स्त्रोत संदर्भ 'मोहिनी माथुर' की बुक "अहिंसा का पुजारी मार्टिन लूथर किंग जूनियर" की प्रथम आवृत्ति वर्ष 2008 व इन्टरनेट से लिया गया है ।
The main source of photos is taken from a free website on the internet.

भाषा ओर उसके मायने

बात भाषा की थी जो सर्वव्यापी होनी थी किंतु यह पहले से ही बिखरी हुई पड़ी थी बस एक दूसरे को बताने की जरूरत थी कि हम इसे एक ही नाम से संबोधित करें जानते सब हैं जो पूरे देश में बोली जाती है देश के प्रत्येक कोने में जिसकी गूंज बच्चे के रोने से लेकर उसे लोरी सुनाने तक थी 
 भाषा को भाषा कहने में थोड़ा वक्त लगाया जब तक हम पर दूसरी भाषा सवार हो चुकी थी और वह थी अंग्रेजी, मैकाले ने भारत में शिक्षा की ऐसी नींव रखी जो पूर्णता गुलाम बनाने में सक्षम थी ओर साथ में गुलामी की फसल जो आज भारत में उगती हुई दिखाई दे रही है उन्हें हम बड़े-बड़े नामी-गिरामी विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के माध्यम से देख रहे हैं
 एक तरफ भारत का मूल तबका जो अपनी क्षेत्रीय भाषा में लिप्त हैं वह से आगे चलकर किसी अंग्रेजी भाषा या किसी विदेशी भाषा का सामना इस प्रकार कर रहा है मानो उस भाषा के बिना उसका जीवन व्यर्थ हो गया हैं क्योंकि उसे एक ही भाषा का ज्ञान हैं बात निम्न पदों की हो या उच्च पदों की भाषाई द्वंद अब तक उसके मन मस्तिष्क में घर बना चुका है और कुछ प्रतिद्वंदी भी सामाजिक स्तर पर इस द्वंद को बनाए रखने में पूर्णता समर्थन कर रहे हैं जिससे क्षेत्रीय बोली के ऊपर और अधिक अंग्रेजी का बोझ बढ़ता जा रहा है इसमें कुछ ही लोग होते हैं जो इस माहौल में ढल जाते हैं बाकी अन्य लोग अपना रास्ता अपनी क्षेत्रीय भाषा में नाप लेते हैं 
हिंदी भाषा की बात करें तो यह विश्व की लगभग 3000 भाषाओं में से एक हैं
लेकिन बात हिंदी और हिन्दुस्तान कि हैं
जब देश आजाद नहीं हुआ था और हमें पूरे देश को एक जुट करना था । देश में ब्रिटिश राज था और भाषा अंग्रेजी दोनों ने मिलकर देश को बहुत नुकसान पहुंचाया हैं लेकिन दीर्घकाल से हिंदी देश में जन जन के पारस्परिक संपर्क की भाषा रही है यह केवल उत्तर भारत की भाषा नहीं बल्कि दक्षिण भारत के आचार्य की भी भाषा रही है
जिसके साथ साथ अहिंदी भाषी राज्यों के भक्त, संत, कवियों आदि ने भी साहित्य के माध्यम से हिंदी को अपनाया है
असम के शंकरदेव, महाराष्ट्र के ज्ञानेश्वर, नामदेव,
गुजरात के नरसी मेहता तथा बंगाल के चैतन्य आदि ।
यही कारण था जब जनता और सरकार के बीच संवाद स्थापना के क्रम में अंग्रेजी या फारसी के माध्यम से दिक्कतें पेश आई तो कंपनी सरकार ने फोर्ट विलियम कॉलेज में हिंदुस्तानी विभाग खोलकर अधिकारियों को हिंदी सिखाने की व्यवस्था की ।
यहां से पढ़े हुए अधिकारियों ने भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में और उसका प्रत्यक्ष लाभ देकर मुक्त कंठ से हिंदी को सराहा। यह पहल अंग्रेजों की तरफ से थी  ।
इससे पहले
प्राचीन हिंदी (1100 ई.-1400 ई.)
मध्यकालीन हिंदी (1400 ई.-1850 ई.)
और आधुनिक हिंदी (1850 ई. से अब तक) के भी युग रहे हैं
कुछ ओर अधिक जानने से पहले हम 'हिंदी शब्द' की उत्पत्ति के बारे में जानेंगे
हिंदी शब्द की उत्पत्ति- भारत के उत्तर - पश्चिम मैं प्रवाहमान सिंधु नदी से संबंधित है अधिकांश विदेशी यात्री उत्तर - पश्चिम सिंहद्वार से ही भारत आए थे इन विदेशियों ने जिस देश के दर्शन किए वह सिंधु का देश था ईरानी सिंधु को 'हिंदु' कहते थे हिंदु से 'हिन्द' बना और फिर हिन्द से फ़ारसी भाषा के सम्बन्ध कारक प्रत्येय 'ई' लगने से हिंदी बन गया । हिंदी का अर्थ है ' हिन्द का ।
 ' किन्तु रोचक तथ्य हिंदी शब्द मूलतः फारसी का है न कि हिंदी भाषा का ।
हिंदी शब्द की उत्पत्ति से तीन बातें सामने स्पष्ट है
सिंधु -} हिंदु -} हिन्द + ई -} हिंदी
इकबाल के अनुसार - 'हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्ता हमारा'
हिंदी शब्द के दो अर्थ हैं - हिन्द देश के निवासी
हिंदी भाषा के विकास क्रम के साथ साथ में क्षेत्रीय भाषाओं पर भी ध्यान देने की आवश्यकता हैै
 आने वाले दौर में हम इस तरह की खरपतवार को काटेंगे जो हमारे द्वारा लगाई गई है लेकिन हमें पता ही नहीं चलेगा है कि यह हमने कब लगा दी ।
सार्थकता तब होगी जब हम गावों को भाव व भावनाओं से समझेंगे न कि बोली से क्योंकि भारत विविधता वाला देश हैं जिसमे भिन्न भिन्न भाषा,बोलियां, संस्कृति, नृत्य, संवाद, साहित्य, दर्शन,लोक परम्परा,गीत, गायन आदि अनेको विविधताओं से भरा हुआ है
8 वीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाएं हैं 
जैसे - असमिया, बांग्ला, गुजराती ,हिंदी ,कन्नड़ ,कश्मीरी ,मलयालम, मराठी ,उड़िया, पंजाबी ,संस्कृत, तमिल ,तेलुगू ,उर्दू,सिंधी, कोकणी, मणिपुरी, नेपाली, बोडो, डोंगरी ,मैथिली, संथाली आदि ।
लेकीन हम आज भी विदेशी भाषाओं को सीर पर उठा कर ढो रहे हैं और हमारी मूल भाषा की ओर कोई ध्यान नहीं है इसका मुख्य कारण दिखावा व अपने आप को एक संचार कौशल कुशाग्र मामना है
किन्तु ऐसा है कि हम सिर्फ अपना ही सोच रहे है आने वाले भावी भविष्व के बारे में नहीं सोचते ऐसा करना हमें आने वाले वक्त में बहुत घाटा देगा जिसकी क्षतिपूर्ति करना असाध्य होगी ।
किन्तु वास्तविकता यह भी है कि हमें हिंदी भाषा ने है आजादी दिलवाई हैं जिसमें पत्र, पत्रिकाएं,लेखन,लेख, अख़बार, वीर रस की कविताएं हिंदी भाषा में ही लिखी गई थी जिससे हमें ओर मजबूती मिलती गई और हम सक्षम होते चले गए ।
कुछ अन्य मत :-
राजाराम मोहन राय ने कहा(1828) : ' इस समग्र देश कि एकता के लिए हिंदी अनिवार्य है ' ।
दयानंद सरस्वती ने कहा(1875) :- ' हिंदी के द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता हैं' ।
महात्मा गांधी ने :- ' हिंदी के प्रश्न को स्वराज्य का प्रश्न मानते थे'
कुछ अंग्रेजो के मत -
विलियम केरी ने(1816) में लिखा :- हिंदी किसी एक देश कि भाषा नहीं बल्कि देश में सर्वत्र बोली जाने वाली भाषा है ।'
जार्ज ग्रियर्सन से हिंदी को ' आम बोलचाल की महाभाषा' कहा है ।
आदि अनेक ऐसे मत है जिन्होंने हिंदी भाषा का अनुसरण किया है इससे साफ होता है कि हमने हिंदी को अपनाने में बहुत समय लगा दिया ।
ओर आज उसका परिणाम हमारे सामने हैं जिसे हम शिक्षा के व्यवसाय से संबोधित करते है उसमे पढ़ना ओर पढ़ना हर किसी की बात नहीं हमें तो सिर्फ दो स्कूलों के नाम याद है एक हिंदी माध्यम तो दूसरा है अंग्रेजी माध्यम ।

जिस बात को कहने के लिए मैने यह लेख लिखा उसका मुख्य उददेश्य भाषाई शिक्षा हैं जो आज समझ बनाने में असक्षम है जिसके कारण क्षेत्रीय भाषा उच्च शिक्षा से मुक्त रह जाती हैं जो देश के किसी कोने से चलकर 
सांसद, राष्ट्रपति भवन तक जा सकती थीं । ऐसी युवा पीढ़ी अब अंग्रेजी की व्याकरण को समझने व उसकी भाषाकोश में उलझी हैं वह समझेगा तब तक उसका वक्त निकल जायेगा ।

संतोष तात्या (-tatya 'luciferin' )