भाषा ओर उसके मायने

बात भाषा की थी जो सर्वव्यापी होनी थी किंतु यह पहले से ही बिखरी हुई पड़ी थी बस एक दूसरे को बताने की जरूरत थी कि हम इसे एक ही नाम से संबोधित करें जानते सब हैं जो पूरे देश में बोली जाती है देश के प्रत्येक कोने में जिसकी गूंज बच्चे के रोने से लेकर उसे लोरी सुनाने तक थी 
 भाषा को भाषा कहने में थोड़ा वक्त लगाया जब तक हम पर दूसरी भाषा सवार हो चुकी थी और वह थी अंग्रेजी, मैकाले ने भारत में शिक्षा की ऐसी नींव रखी जो पूर्णता गुलाम बनाने में सक्षम थी ओर साथ में गुलामी की फसल जो आज भारत में उगती हुई दिखाई दे रही है उन्हें हम बड़े-बड़े नामी-गिरामी विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के माध्यम से देख रहे हैं
 एक तरफ भारत का मूल तबका जो अपनी क्षेत्रीय भाषा में लिप्त हैं वह से आगे चलकर किसी अंग्रेजी भाषा या किसी विदेशी भाषा का सामना इस प्रकार कर रहा है मानो उस भाषा के बिना उसका जीवन व्यर्थ हो गया हैं क्योंकि उसे एक ही भाषा का ज्ञान हैं बात निम्न पदों की हो या उच्च पदों की भाषाई द्वंद अब तक उसके मन मस्तिष्क में घर बना चुका है और कुछ प्रतिद्वंदी भी सामाजिक स्तर पर इस द्वंद को बनाए रखने में पूर्णता समर्थन कर रहे हैं जिससे क्षेत्रीय बोली के ऊपर और अधिक अंग्रेजी का बोझ बढ़ता जा रहा है इसमें कुछ ही लोग होते हैं जो इस माहौल में ढल जाते हैं बाकी अन्य लोग अपना रास्ता अपनी क्षेत्रीय भाषा में नाप लेते हैं 
हिंदी भाषा की बात करें तो यह विश्व की लगभग 3000 भाषाओं में से एक हैं
लेकिन बात हिंदी और हिन्दुस्तान कि हैं
जब देश आजाद नहीं हुआ था और हमें पूरे देश को एक जुट करना था । देश में ब्रिटिश राज था और भाषा अंग्रेजी दोनों ने मिलकर देश को बहुत नुकसान पहुंचाया हैं लेकिन दीर्घकाल से हिंदी देश में जन जन के पारस्परिक संपर्क की भाषा रही है यह केवल उत्तर भारत की भाषा नहीं बल्कि दक्षिण भारत के आचार्य की भी भाषा रही है
जिसके साथ साथ अहिंदी भाषी राज्यों के भक्त, संत, कवियों आदि ने भी साहित्य के माध्यम से हिंदी को अपनाया है
असम के शंकरदेव, महाराष्ट्र के ज्ञानेश्वर, नामदेव,
गुजरात के नरसी मेहता तथा बंगाल के चैतन्य आदि ।
यही कारण था जब जनता और सरकार के बीच संवाद स्थापना के क्रम में अंग्रेजी या फारसी के माध्यम से दिक्कतें पेश आई तो कंपनी सरकार ने फोर्ट विलियम कॉलेज में हिंदुस्तानी विभाग खोलकर अधिकारियों को हिंदी सिखाने की व्यवस्था की ।
यहां से पढ़े हुए अधिकारियों ने भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में और उसका प्रत्यक्ष लाभ देकर मुक्त कंठ से हिंदी को सराहा। यह पहल अंग्रेजों की तरफ से थी  ।
इससे पहले
प्राचीन हिंदी (1100 ई.-1400 ई.)
मध्यकालीन हिंदी (1400 ई.-1850 ई.)
और आधुनिक हिंदी (1850 ई. से अब तक) के भी युग रहे हैं
कुछ ओर अधिक जानने से पहले हम 'हिंदी शब्द' की उत्पत्ति के बारे में जानेंगे
हिंदी शब्द की उत्पत्ति- भारत के उत्तर - पश्चिम मैं प्रवाहमान सिंधु नदी से संबंधित है अधिकांश विदेशी यात्री उत्तर - पश्चिम सिंहद्वार से ही भारत आए थे इन विदेशियों ने जिस देश के दर्शन किए वह सिंधु का देश था ईरानी सिंधु को 'हिंदु' कहते थे हिंदु से 'हिन्द' बना और फिर हिन्द से फ़ारसी भाषा के सम्बन्ध कारक प्रत्येय 'ई' लगने से हिंदी बन गया । हिंदी का अर्थ है ' हिन्द का ।
 ' किन्तु रोचक तथ्य हिंदी शब्द मूलतः फारसी का है न कि हिंदी भाषा का ।
हिंदी शब्द की उत्पत्ति से तीन बातें सामने स्पष्ट है
सिंधु -} हिंदु -} हिन्द + ई -} हिंदी
इकबाल के अनुसार - 'हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्ता हमारा'
हिंदी शब्द के दो अर्थ हैं - हिन्द देश के निवासी
हिंदी भाषा के विकास क्रम के साथ साथ में क्षेत्रीय भाषाओं पर भी ध्यान देने की आवश्यकता हैै
 आने वाले दौर में हम इस तरह की खरपतवार को काटेंगे जो हमारे द्वारा लगाई गई है लेकिन हमें पता ही नहीं चलेगा है कि यह हमने कब लगा दी ।
सार्थकता तब होगी जब हम गावों को भाव व भावनाओं से समझेंगे न कि बोली से क्योंकि भारत विविधता वाला देश हैं जिसमे भिन्न भिन्न भाषा,बोलियां, संस्कृति, नृत्य, संवाद, साहित्य, दर्शन,लोक परम्परा,गीत, गायन आदि अनेको विविधताओं से भरा हुआ है
8 वीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाएं हैं 
जैसे - असमिया, बांग्ला, गुजराती ,हिंदी ,कन्नड़ ,कश्मीरी ,मलयालम, मराठी ,उड़िया, पंजाबी ,संस्कृत, तमिल ,तेलुगू ,उर्दू,सिंधी, कोकणी, मणिपुरी, नेपाली, बोडो, डोंगरी ,मैथिली, संथाली आदि ।
लेकीन हम आज भी विदेशी भाषाओं को सीर पर उठा कर ढो रहे हैं और हमारी मूल भाषा की ओर कोई ध्यान नहीं है इसका मुख्य कारण दिखावा व अपने आप को एक संचार कौशल कुशाग्र मामना है
किन्तु ऐसा है कि हम सिर्फ अपना ही सोच रहे है आने वाले भावी भविष्व के बारे में नहीं सोचते ऐसा करना हमें आने वाले वक्त में बहुत घाटा देगा जिसकी क्षतिपूर्ति करना असाध्य होगी ।
किन्तु वास्तविकता यह भी है कि हमें हिंदी भाषा ने है आजादी दिलवाई हैं जिसमें पत्र, पत्रिकाएं,लेखन,लेख, अख़बार, वीर रस की कविताएं हिंदी भाषा में ही लिखी गई थी जिससे हमें ओर मजबूती मिलती गई और हम सक्षम होते चले गए ।
कुछ अन्य मत :-
राजाराम मोहन राय ने कहा(1828) : ' इस समग्र देश कि एकता के लिए हिंदी अनिवार्य है ' ।
दयानंद सरस्वती ने कहा(1875) :- ' हिंदी के द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता हैं' ।
महात्मा गांधी ने :- ' हिंदी के प्रश्न को स्वराज्य का प्रश्न मानते थे'
कुछ अंग्रेजो के मत -
विलियम केरी ने(1816) में लिखा :- हिंदी किसी एक देश कि भाषा नहीं बल्कि देश में सर्वत्र बोली जाने वाली भाषा है ।'
जार्ज ग्रियर्सन से हिंदी को ' आम बोलचाल की महाभाषा' कहा है ।
आदि अनेक ऐसे मत है जिन्होंने हिंदी भाषा का अनुसरण किया है इससे साफ होता है कि हमने हिंदी को अपनाने में बहुत समय लगा दिया ।
ओर आज उसका परिणाम हमारे सामने हैं जिसे हम शिक्षा के व्यवसाय से संबोधित करते है उसमे पढ़ना ओर पढ़ना हर किसी की बात नहीं हमें तो सिर्फ दो स्कूलों के नाम याद है एक हिंदी माध्यम तो दूसरा है अंग्रेजी माध्यम ।

जिस बात को कहने के लिए मैने यह लेख लिखा उसका मुख्य उददेश्य भाषाई शिक्षा हैं जो आज समझ बनाने में असक्षम है जिसके कारण क्षेत्रीय भाषा उच्च शिक्षा से मुक्त रह जाती हैं जो देश के किसी कोने से चलकर 
सांसद, राष्ट्रपति भवन तक जा सकती थीं । ऐसी युवा पीढ़ी अब अंग्रेजी की व्याकरण को समझने व उसकी भाषाकोश में उलझी हैं वह समझेगा तब तक उसका वक्त निकल जायेगा ।

संतोष तात्या (-tatya 'luciferin' )





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