संघर्ष जिंदगी का वीर्य के शुक्राणु से ही शुरू

कुछ लोग जिंदगी से इतने निराश क्यों हो जाते है जबकि संघर्ष तो हमारा हमारे जन्म लेने से पहले ही शुरू हो गया था। मां के गर्भ से जी हां संघर्ष तो मां के गर्भ से ही शुरू हो गया है जब हमें अंडाणु तक पहुंचना होता है ।

और लाखो खरोडो की संख्या में शुक्राणु अंडाशय तक पहुंचने का प्रयास करते है अंडाणु और शुक्राणु का निषेचन होता है ओर जायगोट बन जाता है ।


 धीरे धीरे यह प्रक्रिया एक नवजीवन प्रदान करती है शुक्राणु अपना लक्ष्य न साधे तो माँ कभी भी गर्भ धारण नहीं कर सकती।

असल में संघर्ष हमारा फेलोपियन ट्यूब से शुरू होता है जिसकी भनक हमें अभी तक नहीं थी। क्योंकि जब हम परेशानी को परेशानी समझने लगते हैं तो हमारे जीवन में नई नई समस्याओं का जन्म होता है और हम उसमें उलझ जाते हैं उसके बजाय हमें समस्या से निदान कैसे पाए उसमें अपना ध्यान लगाना चाहिए। लेकिन जीवन संघर्षों से परिपूर्ण है ऐसा नहीं है कि एक अंडाणु को पा लिए और हमारा संघर्ष खत्म हो गया है। 
मूल जीवन वहाँ है जिसमें संघर्ष हो
नहीं तो क्या मज़ा है जीनें में.......
लेकिन चिंताएं और निराशा आधुनिक संसाधनों की मात्र देन हैं, व्यवस्थित जीवन के लिए भोजन, कपड़ा और मकान पर्याप्त है लेकिन हम भोग विलासिता के चलते हुए नए-नए भौतिकवादी सुख संसाधन को देखते हुए अपने आपको मानसिक अस्वास्थ्य में बांध लेते हैं जीवन में निराशा का उचित कारण यहीं हैं। क्योंकि यह सब भौतिकता से प्राप्त हुआ है। प्रकृति के द्वारा प्राप्त संसाधन बेहद खुशमिजाज है हवा, पानी, अग्नि, पृथ्वी और सूर्य प्रकाश हम प्रकृति के हमेशा ऋणी हैं हमें अत्यधिक भय नहीं होना चाहिए।
 हमें जीवन के प्रत्येक पहलुओं को अच्छे से समझना चाहिए और ऐसे वातावरण से दूर रहना चाहिए जिससे मस्तिष्क दूषित हो और उसमें डर पैदा करें। जैसे पड़ोस के पास कितना धन है कितना बैंक बैलेंस है कितने गाड़ियां हैं। 
अलीशान घर है यह सब मायने नहीं रखता है यह सिर्फ एक अपनी छवि बनाने का नजरिया है। या एक दूसरे को ऊंचा नीचा दिखाने की प्रतिक्रिया हो सकती है। हम मानवीय स्वभाव वाले प्रकृति के रख वाले हैं। हमें प्राकृतिकवाद पर प्राथमिकता देनी चाहिए और मानवीय संवेदनाओं के साथ स्वयं के पल को जीना चाहिए। 
निरंतर अभ्यास निरंतर प्रयास करना चाहिए और निरंतर संघर्ष करना चाहिए। यही जीवन का मूल आधार है जिससे आने वाले समाज को एक नई दिशा प्रदान कर सकते हैं। 
जीवन का मूल आधार 
मानवीय मूल्यों पर आधारित होना चाहिए।
जिससे हम आने वाले समाज को 
एक नई दिशा प्रदान कर सकते हैं।
इस आलेख का सार यह है कि संघर्ष हमारी जिंदगी में तब शुरू हो चुका था जब हम नगण्य थे। हमारा कोई आस्तित्व नहीं था। हम इस बात से अनभिज्ञ थे। समस्याएं मानव जनित है और समस्याओं सुलझाना मानव के मूल स्वभाव में हैं। परिस्थितियाँ ऐसी भी निर्मित होती हैं कि कभी कभी आदमी जीवन काल को समाप्त कर ले। लेकिन उसका हल भी प्राकृति के पास होता हैं उस परिस्थिति में आपको धैर्य और आत्मविश्वास रखने की आवश्यकता होती हैं। हमें कठीन परिस्थितियों का सामना डट कर करना चाहिए। जैसे – किसी पहाड़ पर चढ़ते वक्त पत्थर ऊपर से गिरते है लेकिन हम उस पहाड़ से गिरते हुवे पत्थर को कभी नहीं झेलते क्योंकि हम उसके साथ नीचे चले जायेंगे ठीक उसी प्रकार अपने आप को हर समस्या से बचाओ। समस्याओं को कभी अपने आप पर हावी न होने दें। परिस्थितियों आती है और चली जाती हैं। हमें निराश नहीं होना चाहिए बल्कि निरंतर प्रयास करते करना चाहिए।
कठिनाइयों हमें हमेशा मजबूत करती है न कि मजबूर।।

– संतोष तात्या
       लेखक 

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